रियासत की सीढ़ियां चढ़ते
जाने क्या-क्या लांघ आए हम
कोई रफीक कोई हबीब
तो कोई हमसफ़र गवा आए हम
मुकम्मल थी वो एकांत की कुटिया
जाने कौन सी रफ्तार में
अकेलेपन का ताजमहल बना आए हम