शिवजी ने विष पिया, देवों ने अमृत
और इंसानों के हाथ लगी चाय

सुरा सिरा हो गई अंधियारे में
भोर की पहली किरण है चाय

चांद और सूरज जैसे रखते संतुलन धरती का
मन के टुकड़ों को अचल रखती चाय

गंगा की लहरें हैं जितनी शीतल
उतनी ही रस से कड़क है चाय

हमसफर है, अपनों की
ऊर्जा है, स्थिलता की
श्रम है अगर जीवन
श्रमजननि है चाय