मैंने पूछा राहगीर से
ये रास्ता किस ओर जाता है?
जाता है जितनी भी दूर,
क्या ये मेरे मुल्क की ओर जाता है?

सैरगाह के मेलों में
देखे कई परिचित चेहरे,
अपने मोहल्लों, अपनी गलियों में
मेरा यार नज़र आता है।

कभी तोड़ कर देखना
मेरे मन का एक टुकड़ा,
कण-कण में
वो टूटा मकान नज़र आता है।